कालाकांडी को आप मोटे तौर पर समझें तो कालाहांडी की तरह है, दूर बैठकर आप समझने की कोशिश भर कर सकते हैं, लेकिन समझ वही सकता है जिस पर गुजर रही है। ऐसे में युवा पीढ़ी की कॉस्मोपॉलिटन ब्रिगेड इस मूवी की खास टारगेट है, बाकी सभी टाइमपास के लिए देखना चाहें तो नए सिनेमा के लिए जा सकते हैं। हालांकि देल्ही बेली जैसी फिल्म दे चुके अक्षत वर्मा की आमिर खान ने भले ही कितनी भी तारीफ कर दी, लेकिन वो अपनी पिछली फिल्म का आधा भी नहीं दे पाए हैं।
कालाकांडी फिल्म में एक साथ 7-8 किरदारों की 4 कहानियां चल रही हैं, जिनका मोटे तौर पर एक दूसरे से कोई लेना देना नहीं। हां, एक बात कॉमन है, सबने जैसा प्लान किया था, वैसा हुआ नहीं और लोचा हो गया। फिल्म में इसी लोचे से निबटने की एक रात की कहानी है। सैफ अली खान सिगरेट शराब से दूर रहने वाले जीव हैं, ऐसे में पेट का कैंसर होने की खबर से उन्हें शॉक लगता है और वो उस रात सब कुछ करने का इरादा करते हैं, ड्रग्स लेते हैं, ट्रांसजेंडर को हायर करते हैं, पुलिस के साथ पंगा लेते हैं और सिगरेट शराब भी जमकर पीते हैं। दूसरी कहानी उनके दिलफेंक भाई अक्षत ओबेरॉय की की है, जिसकी शादी होने वाली है लेकिन ऐन संगीत की रात वो होटल में एक लड़की के बुलाने पर वहां पहुंचता है, लेकिन सैक्स से पहले ही उसका बॉयफ्रेंड या हसबैंड आ जाता है तो उसे भागना पड़ता है।
तीसरी कहानी देल्ही बेली बाले कुणाल रॉय कपूर और शोभिता की है, शोभिता अमेरिका की फ्लाइट से पहले शहनाज की बर्थडे पार्टी में जाती है। जहां पुलिस ड्रग्स के चलते रेड डालती है, सभी वहां से किसी तरह भागते हैं और एक्सीडेंट में दो लडकों को ठोक देते हैं, यानी प्लान में लोचा। चौथी कहानी विजय राज और दीपक डोबरियाल की है, जो एक गैंगस्टर के कलेक्शन एजेंट हैं, पूरी फिल्म में वो उस कलेक्शन की ही फर्जी लूट का प्लान करते रहते हैं। आखिर में दीपक डोबरियाल विजय राज को मारकर लूट की फर्जी स्टोरी बनाता है, लेकिन चालाक गैंगस्टर उसका धोखा पकड़ लेता है, एक और लोचा। इन सबकी परेशानियां मिलाकर पॉजीटिव मूड में खत्म करने की कोशिश की है डायरेक्टर अक्षत वर्मा ने।
फिल्म में जो प्लस है वो है सैफ अली खान की मस्तमौला एक्टिंग, कुछ अच्छे फनी सींस, कुछ फनी डायलॉग्स और बाकी सब ड्रग्स, गैंग, सैक्स, एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर, ढेर सारी गालियां और धोखा, जिनमें से काफी कुछ अक्षत वर्मा की फिल्म डेल्ही बेली में भी था। लेकिन डेल्ही बेली में कुछ और भी था, शानदार म्यूजिक था। इस फिल्म के गाने कब आते हैं, कब जाते हैं, असर नहीं छोड़ते। जाहिर है सैफ, विजय राज, दीपक डोबरियाल जिस जिस सीन में हैं, वो दमदार बन पड़ा है, लेकिन पिछले कुछ सालों में इस तरह की फिल्में आती रही हैं। लेकिन चली वही हैं, जिनका म्यूजिक लाइफ इन ए मेट्रो या डेल्ही बेली की तरह दमदार था।
अक्षत वर्मा ने अलग कुछ किया तो बस ये कि शराब पीकर झूमने की बजाय ड्रग्स लेकर दुनियां कैसी दिखती है, वो सैफ की नजर से दर्शकों को दिखाया, वो भी दिलचस्प तरीके से, सड़क पर चलता प्लेन, लिफ्ट में आती समंदर की लहरें और संगीत सेरेमनी के हॉल को घेरती पानी की लहरें ह्वेल के साथ। बाकी सबमें वो कई फिल्मों की कॉपी करते लगे। ऐसे में मुंबई के समझने के लिए, कई किरदारों की लाइफ की कश्मकश को जानने के लिए यंग जनरेशन इस मूवी को देखने जाएगी, लेकिन मल्टीप्लेक्सेज के लिए ही बनी है ये फिल्म, छोटे शहरों में पसंद नहीं की जाएगी। परिवार के साथ देखने से तो वैसे ही परहेज करेंगे लोग।
रेटिंग: 2.5 Star