जितेंद्र भट्ट
(((लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और इंडिया टीवी में कार्यरत हैं…)))
बिहार और पश्चिम बंगाल के दर्जनभर शहर और कस्बों में रामनवमी के दिन से हिंसा और उपद्रव की आग लगी है। एक हफ्ता हो गया, पर झड़प की खबर अभी भी आ रही हैं। उत्पाती पुलिस के सामने दुकानों में आग लगा देते हैं। वो भागते भी नहीं। पुलिस के सामने खड़े होकर पत्थर बरसाते हैं। खास संगठन से जुड़े लोग लाठी डंडों तलवारों के साथ पुलिस के सामने हंगामा करते रहते हैं। पर पुलिस कुछ नहीं कर पाती। सरकार हालात को काबू नहीं कर पा रही। या करना ही नहीं चाहती? दंगे फसाद की इसी पृष्ठभूमि पर एक कहानी।
दंगा : एक कहानी
हुजूर, वो हथियारों के साथ जुलूस निकालने की बात कर रहे हैं।
हमने वट्सएप पर देखा है।
उन्हें रोकिए। उनकी मंशा ठीक नहीं है, साहब।
अनहोनी की आशंका से डरे, घबराए लोगों ने गणमान्यों से गुहार लगाई।
हाथ जोड़े। गुजारिश की।
मालिक, वो शहर की आबोहवा खराब कर देंगे।
गणमान्य मुस्कराए। मानो सारी बातें समझ गए थे।
फिर, अपने सेक्रेटरी को आवाज मारी।
सेक्रेटरी पास आया। तो, हल्की आवाज में पूछा।
जुलूस हिंदू निकाल रहे हैं, या मुसलमान?
“ये लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में सभी सूचनाएं लेखक द्वारा दी गई हैं, जिन्हें ज्यों की त्यों प्रस्तुत किया गया हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति दस्तक इंडिया उत्तरदायी नहीं है।”