अजय चौधरी
रोजाना कुछ भी कर के, आधे घंटे टीवी देख ही लेता हूं। बावजूद इसके सबकुछ मोबाईल पर मौजूद है। पर अब ऐसा लगता है टीवी नहीं चाहता कि मैं उसे आधे घंटा भी देखूं। यहां टीवी से मतलब समाचार चैनलों से है।
अभिनेत्री श्रीदेवी की मौत एक दु:खद घटना है। पर किसी भी चीज की अती हो जाना और उसकी खाल नोच लेना भी गलत है। श्रीदेवी की मौत की खबर अखबारों ने भी छापी पर संतुलन बनाए रखा। पर हमारी टीवी मीडिया पर कहां संतुलन बनाया जाता है। मानों बंदर के हाथ उस्तरा क्या लगा वो तो हो गया शुरु। कहना गलत न होगा कि ” श्रीदेवी के साथ बाथटब में डूब मरी है पत्रकारिता”।
लोगों को पता ही नहीं चल रहा बाकी दुनिया में क्या हो रहा है। नीरव मोदी का क्या रहा? केजरीवाल और उसके विधायकों का क्या रहा। लेकिन सबको इतना जरुर पता है कि बाथ टब में कैसे डूब मरना है। और इसमें सिर्फ दिखाने वालों की गलती नहीं देखने वालों की भी है। क्योंकि वो वही दिखा रहे हैं जो आप देखना चाहते हैं।
आप देख क्यों रहें हैं, अगर आपको पसंद आ रहा है तो बेशक आप देखते रहिए। अगर आपको नहीं आ रहा है तो मत देखिए। सिर्फ न्यूज चैनल्स ही नहीं फिल्मोें से लेकर सिरियलस तक वाली टीवी की दुनिया अपना अंत खुद करती आ रही है। तभी तो मोबाईल पर नेटफिल्कस, एमोजन प्राईम और यूट्यूब बढते ही जा रहे हैं। भला हो वो तो स्मार्ट टीवी का जो आपको इंटरनेट सर्फ कर देखने की सुविधा दे रहा है। इसी से टीवी भविष्य में बचे रहेंगे। वर्ना अंत नजदीक है।