अजय चौधरी
ये वो मोदी हैं जिसके दम पर भाजपा 99 का आंकड़ा छु पाई है। और यकीन मानिए सिर्फ मोदी ही हैं और कोई भाजपा के पास चेहरा था ही नहीं। ये बात भाजपा ने ही नहीं गुजरात के बेटे मोदी ने भी बखूबी समझी। इसीलिए प्रधानमंत्री पद की तमाम व्यस्ताओं के बावजूद उन्होंने सारी ताकत गुजरात में झोंक दी और धुँवाधार 36 रैलीयां और 25000 किलोमीटर का सफर तय किया। नीच से लेकर सी प्लेन तक मोदी ने बखूबी भुनाया। क्योकिं अगर यहां बीजेपी की हार होती तो वो हार सिर्फ गुजरात चुनावमें बीजेपी की हार नहीं खुद प्रधानमंत्री मोदी की हार के रूप में इसे देखा जाता और इसका असर सीधा सीधा 2019 लोकसभा चुनाव पर होता और ये भी माना जाता कि ये गुजरात की जनता का जीएसटी के प्रति रोष है।
ये तो पहले से तय था कि गुजरात में बीजीपी की ही सरकार बनेगी, देखना ये था कि मोदी के गढ़ में कांग्रेस कितनी सेंध लगा पाएगी। सन 95 से लेकर अब तक गुजरात में बीजेपी कभी 2 के अंको में नहीं आयी। हमेशा 3 अंकों के आंकड़ों में ही रही लेकिन ये कांग्रेस की सेंध ही थी कि 2017 में बीजेपी को 99 पर थाम दिया और खुद 80 सीटें हासिल की। 2012 में भाजपा की 115 सीटें आयी थी और कांग्रेस को 61 सीटें मिली थी। 2017 के इस चुनाव में पहले के मुकाबले कांग्रेस बढ़ी है और बीजेपी घटी है। पर ये भी नहीं भूलना चाहिए कि जीत जितने वाले की ही होती है।
वहीं इस चुनाव में नोटा को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। करीब साढ़े पांच लाख मत नोटा को पड़े हैं। यानी 5 लाख से अधिक लोगों को न बीजेपी पसंद है न ही कांग्रेस। जो अब भी सोच रहे हैं ये विकास की जीत हुई है वो गलत हैं। ये विकास नहीं मोदी की जीत हुई है। क्योकिं मोदी ने पूरे चुनाव प्रचार में शायद ही कहीं विकास का जिक्र किया हो। मोदी सिर्फ मणिशंकर अय्यर के नीच वाले बयान और पाकिस्तान को घसीटने में लगे रहे। क्योकिं उनके पास गुजरात के लोगों को बताने के लिए कुछ खास उपलब्धि नहीं थी। यही नहीं गुजरात के लोगों के दिल से जुड़ने के लिए मोदी ने अपने भाषण भी गुजराती में ही दिए। जिसमें वो कामयाब रहे।